nalanda university history in hindi

आज किसी से पूछो कि पढ़ने का मौका मिले तो दुनिया के कौन से विश्वविद्यालय में

पढ़ेंगे जवाब मिल सकता है ऑक्सफोर्ड हार्वर्ड केंब्रिज भारत से हजारों छात्र या कहिए लाखों छात्र हर साल इन यूनिवर्सिटीज में पढ़ने जाते हैं इन तीन
के अलावा और कई में लालायित रहते हैं बहुत सारे और भी लोग आज से हालांकि 800 साल पहले एक ऐसा दौर था जब गंगा उल्टी नहीं सीधी बहती थी दुनिया भर के लोग पढ़ने के लिए हिंदुस्तान के एक यूनिवर्सिटी तक आते थे बाकायदा संस्कृत सीखते थे दरवाजे पर खड़े रहते थे लेकिन एडमिशन नहीं मिलता था
मिलता था तो सिर्फ 20 पर छात्रों को जितने आते थे उनमें से एडमिशन के लिए दुनिया के सबसे होनहार छात्रों का इंटरव्यू होता था
और इंटरव्यू लेने वाला होता था एक द्वारपाल इसके बाद दो लेवल और होते थे ये सब पास कर गए तब आपको मौका मिलता था दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में पढ़ने का जिसमें माना जाता है कि लाखों किताबें हुआ करती थी हम बात कर रहे हैं.

क्या है नालंदा का इतिहास किसने इसे बनवाया क्या पढ़ाया जाता था नालंदा में कैसे पढ़ाया जाता था जानेंगे आज के एपिसोड
में साथ ही जानेंगे नालंदा के नष्ट होने और उसके दोबारा खोजे जाने की कहानी भी नमस्ते मैं हूं निखिल और आप देख रहे हैं इतिहासिक किस्सों कहानियों से जुड़ा हमारा रोजाना का कार्यक्रम तारीख आज कहानी इसमें नाला लंदा की बशीर बद्र का एक शेर है कि खुदा हमको ऐसे खुदाई ना दे कि अपने सिवा कुछ दिखाई ना दे बशीर बद्र खुदाई की बात कर रहे हैं यानी कि दुनिया की हालांकि एक दूसरा शब्द भी है इससे मिलता जुलता खुदाई जिसके बिना
इतिहास नहीं दिखाई देता हम बात कर रहे हैं,

आर्कियोलॉजी की सा 1799 की बात है मैसूर में टीपू सुल्तान की हार के

बाद कंपनी बहादुर बहुत ताकतवर हो गई पूरे हिंदुस्तान पर जीत अभी भी बाकी थी और इस रास्ते पर चलने के लिए अंग्रेजों को जरूरत थी एक मैप की टीपू की हार के बाद कंपनी ने साउथ इंडिया में सर्वे का काम शुरू किया और यही
कोशिश आगे चलकर भारत के नक्शे के रूप में परिणित भी हुई लेकिन नक्शे की बात किसी और एपिसोड में हम करेंगे धीरज रखिए अभी बात एक नाम से शुरू करते हैं.

फ्रांसिस बुकानन हैमिल्टन कौन थे मैसूर में स का जिम्मा जिस शख्स को मिला उनका ही नाम था फ्रांसिस बुकानन हैमिल्टन हैमिल्टन ने पहले मैसूर
का सर्वे किया इसके बाद 1807 में बंगाल की जिम्मेदारी उन्हें मिली बंगाल में सर्वे के दौरान राजगृह से कुछ दूर बड़गांव नाम
की जगह पर हैमिल्टन का ध्यान कुछ बौद्ध मूर्तियों की तरफ गया अब यह मूर्तियां जहां मिली वहां एक बड़ा सा टीला बना हुआ
था हैमिल्टन को एहसास हुआ कि इस जगह का भारत के इतिहास से एक तगड़ा कनेक्शन हो सकता है लेकिन वह फिर भी इसे पहचान नहीं
पाए हालांकि जो देखा उन्होंने हैमिल्टन ने उसे डायरी में नोट किया और आगे गंगा नदी में मिलने वाली मछलियों पर शोध करने वो
चले गए हैमिल्टन ने बंगाल में एक चिड़िया घर का निर्माण भी करवाया था वैसे आगे चलकर हैमिल्टन की डायरी एक अंग्रेज फौजी अफसर
के हाथ लगी उन्होंने इसका मिलान किया नसांग की यात्रा वृत्तांत से नसांग एक बौद्ध भिक्षु का नाम था जो सातवीं सदी में चीन से भारत आए थे वेन सांग के यात्रा वृत्तांत को पढ़कर अंग्रेज अफसर को एहसास हुआ कि हैमिल्टन ने जो जगह खोजी थी वो असल में नालंदा था जहां मौजूद था।

 

 

भारत का प्राचीन विश्वविद्यालय जो अपने समय में दुनिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी होता था साल 1915 में नालंदा में खुदाई का काम
शुरू हुआ और 1937 तक के चला यानी कि पूरे पूरे 12 साल आजादी के बाद 1974 और 1982 में कई दौर की खुदाई और रेस्टोरेशन का काम
हुआ खुदाई में मिला क्या यह जानने से पहले थोड़ा और पीछे चलते हैं और जानते हैं. नालंदा के बनने की कहानी नालंदा का पूरा नाम है नालंदा महाविहार
इसकी कहानी शुरू होती है ईसा से 1200 साल पहले यानी अभी से लगाइए तो 3200 साल पहले खुदाई में मिले अवशेषों से पता चलता है कि
नालंदा में बुद्ध और महावीर के समय से पहले भी इंसानी बसाहट होती थी बौद्ध धर्म ग्रंथ बताते हैं कि महात्मा बुद्ध ने नालंदा में एक उपदेश दिया उनके एक शिष्य शार्य पुत्र के नाम पर नालंदा में में एक स्तूप भी बना हुआ है नालंदा का एक संबंध जैन धर्म से भी है जैन सोर्सेस के अनुसार
भगवान महावीर ने भी कुछ वर्ष नालंदा में बिताए थे नालंदा में यूनिवर्सिटी कब बनी
इस सवाल का जवाब हमें मिलता है गुप्त काल में जिसे भारत का गोल्डन पीरियड भी कहा जाता है नालंदा की खुदाई में मिली एक सील
से पता चलता है कि शक्र दित्य ने नालंदा में एक बौद्ध मठ का निर्माण करवाया था शक्र दित्य को हम गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त के नाम से जानते हैं गुप्त काल के बाकी शासक बाला आदित्य तथागत गुप्त वगैरह ने भी नालंदा में निर्माण करवाया और छठी शताब्दी आते-आते यह बहुत बड़े शिक्षा
केंद्र के रूप में डेवलप हो गया यानी कि कैंपस बढ़ता जा रहा है गुप्त काल अवशेषों से पता चलता है कि नालंदा में तब हिंदू जैन बौद्ध तीन धर्मों का प्रभाव था
जो यहां के निर्माण शैली वास्तुकला और मूर्तियों में भी दिखता है गुप्त काल के बाद कन्नौज के राजा हर्षवर्धन ने नालंदा
को अनुदान दिया उन्होंने यहां तीन मंद का भी निर्माण करवाया आठवीं सदी के बाद बंगाल के पाल वंश ने नालंदा की देखरेख की

 

 

पाल वंश के राजाओं ने ही विक्रमशिला और उदान पुरी में भी मठों का निर्माण करवाया था जो अपने आप में बड़ी यूनिवर्सिटीज होती थी अब यह भी यूनिवर्सिटी थी लेकिन नालंदा का रुतबा सबसे ऊंचा था कोरिया जापान चीन तिब्बत इंडोनेशिया पर्शिया और तुर्की से लोग पढ़ने आते अब चूंकि यह यूनिवर्सिटी हुआ करती थी तो सबसे बड़ा सवाल यही आता है कि यहां पढ़ाई कैसे होती थी नालंदा में पढ़ाई कैसी थी ब्रैड पिट की फिल्म फाइट क्लब अगर आपने
देखी है तो एक आप सीन याद कर सकते हैं. ब्रैड पिट के क्लब में शामिल होने के लिए उसके घर के बाहर लोगों की लाइन है जिन्हें
बेइज्जत करते हुए वो कहता है कि लौट जाओ तुम क्लब में शामिल होने के लायक नहीं नालंदा में ऐसी बेइज्जती शायद ही होती थी
लेकिन यह अपने कठिन एंट्रेंस टेस्ट के लिए जाना जाता था पूरी दुनिया में चीनी यात्री सांग लिखते हैं कि

नालंदा में दाखिला लेने वालों में सिर्फ 20 फीदी छात्रों को एंट्री मिल पाती थी 100 आ रहे हैं तो 20
अंदर जाए एंट्री के लिए सबसे पहला टेस्ट लेते थे द्वारपाल द्वारपाल भी कते विद्वान लोगों को बनाया जाता था जो धर्म और दर्शन
से जुड़े कठिन सवाल पूछते थे यहां से अगर आप पास हुए तो आगे दो और लेवल पर टेस्ट होगा पास हो गए तो आपको एडमिशन मिलेगा
नालंदा में पढ़ाई के दौरान आपको रहना भी वही होता था एक रेजिडेंशियल कैंपस था जैसा अभी जेएनयू है वन सांग ने नालंदा के बारे
में लिखा है कि पूरा बिहार ईंटों की एक दीवार से खिरा है जिसका एक गेट सीधे शिक्षा केंद्र में खुलता है शिक्षा केंद्र में आठ बड़े-बड़े हॉल हैं जिनमें पढ़ाई
होती है अन्य विवरणों के अनुसार नालंदा में मठों की एक कतार हुआ करती थी साथ ही भव्य स्तूप और मंदिर भी थे नालंदा की
खुदाई में जो कमरे मिले हैं उनकी बनावट देखकर पता चलता है,


कि हर कमरे में सोने के लिए पत्थर की एक चौकी होती थी और दीपक
ढिबरी वगैरह रखने के लिए आल बने हुए थे इनके अलावा यूनिवर्सिटी परिसर में बगीचों प्रार्थना कक्ष और मंदिरों का भी जिक्र
मिलता है यानी एक स्टूडेंट लाइफ में जो जो चीजें लग सकती थी उस जमाने में उन सबका इंतजाम नाम था नालंदा अपने विशाल
लाइब्रेरी के लिए भी फेमस था जिसका नाम धर्मग्रं जिनके नाम रत्न सागर रत्नो दधि और रत्न रंजक थे एकएक कक्ष नौ मंजिल का
हुआ करता था और इसमें हजारों किताबें और ग्रंथ रखे हुए थे नालंदा में छात्र पढ़ते क्या थे यहां भारतीय षट दर्शन ग्रामर एस्ट्रोनॉमी गणित
जैसे तमाम विषयों की पढ़ाई होती थी पढ़ाई का तरीका भी अनूठा था बड़े-बड़े हॉल्स में छात्र आमने-सामने बैठ कर के वाद विवाद
करते थे जिसके बाद शिक्षक उनकी गलतियों को सुधारते थे वेन सान के लिखे अनुसार नालंदा में एक वक्त में 10000 छात्र पढ़ाई करते
थे और उन्हें पढ़ाने के लिए लगभग 1500 शिक्षक हुआ करते थे इन सबके ऊपर एक चांसलर भी हुआ करते थे न सांग ने नालंदा के एक
चांसलर शिला भद्र का जिक्र किया है जो न सांग के अनुसार योगशास्त्र के सबसे बड़े शिक्षक थे नालंदा के तमाम विवरणों से पता
चलता है कि ये एक विशाल उपक्रम था।

इसलिए सवाल ये कि इस यूनिवर्सिटी को चलाने के लिए फंड्स कहां से आते थे फंडिंग कौन करता
था नालंदा की जैसे हमने पहले बताया नालंदा की स्थापना के लिए गुप्त वंश के राजाओं हर्षवर्धन और पाल राजाओं ने अनुदान दिया
आगे काम चलता रहे इसके लिए 100 गांव यूनिवर्सिटी के अधीन कर दिए जाते थे हर गांव से बारी-बारी लगभग 200 परिवार हर
महीने यूनिवर्सिटी की जिम्मेदारी उठाते थे और यहीं से खाने पीने पढ़ने लिखने ने का सामान आता था अब आप ये पूछ ले एलुमनाई कौन-कौन
नालंदा में किस-किस ने पढ़ाई की चीनी यात्री नसांग के लिखी में नालंदा का खूब जिक्र है 637 ईसवी के आसपास नसांग नालंदा आए और कुल मिलाकर 5 साल यहीं रहे वो नालंदा में नसांग को मोक्ष देव का नाम मिला नसांग के भारत आने का मुख्य उद्देश्य बौद्ध ग्रंथों की प्रतिलिपि हासिल करना ही
था जब वोह लौटे तो नालंदा से छह 157 संस्कृत ग्रंथ और बौद्ध धर्म से जुड़े 150 अवशेष अपने साथ वापस ले गए कहानी कहती है
कि यह सब ले जाने में वेन सांग को 20 घोड़ों की जरूरत पड़ी थी वेन सांग के यहां से जाने के बाद नालंदा की ख्याति इस कदर
फैल गई कि अगले 30 सालों में चीन और कोरिया से 11 यात्री नालंदा आए इनमें एक का नाम था इत सिंह इत सिंह ने नालंदा में
10 साल गुजारे और वह यहां से 400 ग्रंथ लेकर चीन लौटे वेन सांग की तरह इत सिंह ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में नालंदा के
बारे में डिटेल में बताया है एक जगह वो नालंदा में छात्रों का जो रूटीन होता था उसके बा रे में बताते हैं वो लिख रहे हैं कि एक घंटे की आवाज से सुबह सभी भिक्षु उठते हैं।

स्टूडेंट्स परिसर में मौजूद 10 तालाबों में उन्हें नहाना होता है नहाने के बाद वोह डेढ फुट चौड़ा और 5 फुट लंबा कपड़ा अपनी कमर से लपेट हैं और कोई भी भिक्षु खाना खाने के बाद नहीं नहाता नालंदा के बारे में ये सारे डिटेल्स जानने के बाद सिर्फ अब एक सवाल बचता है कि
नालंदा अगर इतना बढ़िया था तो तो खो कैसे गया इसे तोड़ा किसने नालंदा की खुदाई के दौरान ऊपरी लेयर
में बहुत सी राख मिलती है और जिससे पता चलता है कि यहां एक बहुत बड़ी आग लगी थी

 

कहानी फेमस है कि बख्तियार खिलजी ने नालंदा को आग लगाई और जब नालंदा की लाइब्रेरी को जलाया गया वो छ महीने तक जलती रही कोई न महीने कहता है कोई छ महीने लोग कहते हैं कि लाखों किताबें थी तो महीनों जली नालंदा कहां खो गया यह समझने के लिए हमें चलना होगा 12वी सदी में
बख्तियार खिलजी के साथ-साथ हम चलेंगे जिसकी अपनी कहानी अफगानिस्तान से शुरू होती है खिलजी के वक्त के इतिहासकार
मिनहाज ने अपनी किताब तबकात नासरी में बख्तियार खिलजी की कहानी का जिक्र किया खिलजी तब मोहम्मद गौरी के दरबार में
मुलाजिम हुआ करता था साल 1192 में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद दिल्ली सल्तनत की शुरुआत हुई और तब बख्तियार खिलजी को मिलता है एक बड़ा मौका दिल्ली से खिलजी जाता है बदायूं जहां एक तुर्क कमांडर के मातहत उसे मिल कमांडर की पदवी मिल जाती है यहां से वह आवज जाता है जहां
उसे मिर्जापुर जिले में एक जागीर दे दी जाती है आगे बख्तियार खिलजी की नजर पड़ती है बंगाल और बिहार पर जहां तब लक्ष्मण सेन
नाम के राजा होते थे बंगाल तब भारत के सबसे अमीर इलाकों में से एक था बख्तियार खिलजी ने एक के बाद एक बंगाल पर कई हमले
किए और वहां से खूब सारी दौलत लूटकर वो ले गया दिल्ली सल्तनत के सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक ने जब खिलजी के किस्से सुने तो
उन्होंने उसे अपने दरबार में बुला लाकर सम्मानित भी किया मिन्हाज लिखता है कि खिलजी की ऐसी आवभगत देखकर दिल्ली के अमीर
जल भुन के रह गए कि हम कब से बैठे हैं।

यह आया और अभी सम्मान हो गया बिहार पर हुए हमलों के दौरान मिन्हाज बख्तियार खिलजी के
एक हमले का जिक्र मुख्य रूप से करता है. मिन्हाज लिखता है खिलजी ने 200 घोड़ सवारों के साथ बिहार में किले पर आक्रमण
किया किले में बहुत से ब्राह्मण थे जिन्होंने अपने सिर मुड़े हुए थे उन सभी को मार डाला गया किले से खिलजी को बहुत सारी किताबें मिली जिन्हें पढ़कर पता चला कि असल में यह किला नहीं एक विद्यालय था और इसे विहार बोला जाता है अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि मिन्हाज ने जिस
विहार पर हमले का जिक्र किया वो उदान पुरी था मिन्हाज के लिखे में नालंदा का जिक्र नहीं मिलता मिन्हाज के अलावा समसामयिक
दस्तावेजों की अगर बात करें तो धर्म स्वामीन के लिखे में नालंदा का जिक्र मिलता है ये एक तिब्बती भिक्षु थे और 1236
के आसपास इन्होंने नालंदा की यात्रा की धर्म स्वामी ने अपने वृतांत में लिखा है कि तुर्क हमलावरों ने बिहार में बौद्ध मठों और बहारों को काफी नुकसान पहुंचाया था वो तुर्कों का नाम ले रहे हैं मठों को तोड़कर उनके पत्थर गंगा में फेंक दिए गए किताबों और ग्रंथों का भी यही हाल हुआ अपने वृतांत में धर्म स्वामीन लिखते हैं.

कि 1235 ईसवी में नालंदा वीरान हो गया धर्म स्वामीन ने अपने लिखे में नालंदा की विशाल लाइब्रेरी का जिक्र नहीं किया है जिससे पता चलता है कि उससे पहले ही लाइब्रेरी नष्ट हो गई थी धर्म स्वामीन के अनुसार बख्तियार खिलजी की मौत के कई साल बाद नालंदा पर एक और आक्रमण हुआ जिसके बाद
नालंदा लगभग पूरी तरह खाली हुआ तुर्क आक्रमणों के चलते बौद्ध भिक्षुओं में डर बैठ गया जिसके बाद यह इलाका खाली कर दिया गया अभी तक आपने जो सुना यह बातें बख्तियार खिलजी के काल के नजदीक के सोर्सेस बता रहे हैं हालांकि नालंदा के बारे में एक और सोर्स है जो नालंदा के जलने की एक दूसरी कहानी बताता है तिब्बती लामा तारा नाथ के लिखे अनुसार एक बार दो ब्राह्मण भिक्षुओं ने तंत्र सिद्धि हासिल कर नालंदा की लाइब्रेरी को जला दिया था
इसी तरह पक्स जोन जैंग नाम का एक तिब्बती सोर्स भी इसी तरह की कहानी बताता है साल 2014 में इंडियन एक्सप्रेस के एक कॉलम में
इतिहासकार द्विजेंद्र नारायण झा भी इन्हीं दोनों सोर्सेस को कोट करते हैं उनका दावा है कि चूंकि दो सोर्स एक सी कहानी बताते हैं इसलिए यह वाली कहानी ज्यादा प्रामाणिक है हालांकि एक सच ये भी है कि फिर वो चाहे तारा थ हो या दूसरे तिब्बती सोर्स ये सब 17वीं और 18वीं सदी के आसपास के हैं यानी
नालंदा के नष्ट होने के काफी बाद के इसलिए इनकी प्रामाणिकता पर प्रश् प्रश्न रहेगा बहरहाल असलियत जो भी रही हो इतना सच है कि
12वीं सदी के बाद नालंदा समय के गर्त में खोता चला गया और नालंदा का नामो निशान पूरी तरह गायब हुआ इसके 600 साल बाद 19वीं
सदी में अंग्रेजों के समय में नालंदा की खोज एक बार फिर हुई आजादी के बाद 1991 में पुराने नालंदा के पास नव नालंदा महाविहार की नीव रखी गई 2006 में इसे यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला हालांकि यहीं से कुछ

विवादों की शुरुआत भी हुई साल 2006 में बिहार सरकार की अगुवाई के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमृत सेन को नालंदा मेंटर ग्रुप का अध्यक्ष बनाया 2010 में नालंदा के परिसर के लिए 2000 करोड़ की रकम भी स्वीकृत हुई 2012 में अमृत सेन को नालंदा यूनिवर्सिटी का पहला चांसलर बनाया गया नई नालंदा यूनिवर्सिटी का सितंबर 2014 में यूनिवर्सिटी का पहला सत्र शुरू हुआ लेकिन 2 साल बाद ही अमृत्य सेन ने खुद को नालंदागवर्निंग बोर्ड से अलग किया यह मामला तब काफी चर्चित हुआ था अमृत सेन ने आरोपलगाया था कि सरकार नहीं चाहती कि वह

चांसलर रहे नालंदा के नए परिसर का जो प्रोजेक्ट पास हुआ था उसके 2020 में पूरा हो जाने की उम्मीद थी लेकिन कोविड के चलते निर्माण काम में देरी हो गई फिलहाल नए परिसर के निर्माण का काम पूरा हो चुका है प्रधानमंत्री उसका उद्घाटन कर चुके हैं उम्मीद है यह विश्वविद्यालय एक बार फिर शिक्षा देने के मामले में उसी शिखर तक पहुंचे जहां पुराना नालंदा हुआ करता थानालंदा की कहानी आपके लिए संकलित की थी
कमल ने और इसे जतिन ने आपके लिए रिकॉर्ड


India Vlog
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I am an artist ,Video Editer and Vlogger . मेरा मुख्य कार्य गरीब,असहाय ,जरुरतमंद ,लोगों को सहायता पहुंचाना ? आप सभी के सहयोग से ये काम हम करते हैं । For daily routine of all Indian people with me.. Bhola swarthi. मैं आप को भारत के लोग और भारत के प्राकृति जगह को और स्थान को आप तक पहुँचाने का एक प्रयास कर रहा हूँ इन्टरनेट के माध्यम से आपको हर जगह को और स्थान दिखाने वाले है। भारत के निम्नलिखित जगह: आप को देखने को मिलेगा ।

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