Pankaj Tripathi Biography

पंकज त्रिपाठी कहां के रहने वाले हैं

Pankaj Tripathi कहां के रहने वाले हैं

पंकज त्रिपाठी

पंकज त्रिपाठी एक भारतीय अभिनेता हैं जो हिंदी फिल्मों और टेलीविजन शो में काम करते हैं। उन्हें अपनी बहुमुखी प्रतिभा और विभिन्न प्रकार के किरदारों को निभाने के लिए जाना जाता है।
पंकज त्रिपाठी

जीवन और करियर:

त्रिपाठी का जन्म 5 सितंबर 1976 को बिहार के गोपालगंज जिले में हुआ था।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल गुप्ता कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
उन्होंने 2004 में फिल्म ‘रन’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की।
तब से उन्होंने ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘न्यूटन’, ‘स्त्री’, ‘लुका छुपी’, ‘मिर्जापुर’ और ‘सेक्रेड गेम्स’ जैसी कई सफल फिल्मों और वेब सीरीज में काम किया है।
उन्हें अपने काम के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं।
पंकज त्रिपाठी
पंकज त्रिपाठी
उल्लेखनीय भूमिकाएं:
त्रिपाठी को ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ (2012) में ‘सुल्तान क्वाँशी’ की भूमिका के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है।
यह फिल्म उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी और उन्हें व्यापक पहचान दिलाई।
उन्होंने ‘न्यूटन’ (2017) में ‘न्यूटन कुमार’ की भूमिका के लिए भी प्रशंसा प्राप्त की, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।
अन्य उल्लेखनीय भूमिकाओं में ‘स्त्री’ (2018) में ‘रुद्र चौहान’, ‘लुका छुपी’ (2019) में ‘सरवन सिंह’, ‘मिर्जापुर’ (2018-2020) में ‘काली कटुआ’ और ‘सेक्रेड गेम्स’ (2018) में ‘काली भूषण यादव’ शामिल हैं।

व्यक्तिगत जीवन:

त्रिपाठी ने 2004 में मृदुला त्रिपाठी से शादी की।
उनकी एक बेटी है, आशी त्रिपाठी।
वह अपने काम के प्रति समर्पित हैं और एक निजी व्यक्ति हैं।
पुरस्कार और सम्मान:

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (2018) – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (न्यूटन)
फिल्मफेयर पुरस्कार (2019) – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (स्त्री)
आईआईएफटीए पुरस्कार (2018) – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (न्यूटन)
जी सिने पुरस्कार (2019) – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (स्त्री)
निष्कर्ष:
पंकज त्रिपाठी भारतीय फिल्म उद्योग के सबसे प्रतिभाशाली और बहुमुखी अभिनेताओं में से एक हैं।
उन्होंने अपने करियर में कई शानदार प्रदर्शन दिए हैं और उन्हें अपने काम के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
वह निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में और भी अधिक सफलता हासिल करेंगे।
पंकज त्रिपाठी
पंकज त्रिपाठी
है आज हम आपको एक ऐसे अभिनेता के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने जिस किरदार को भी निभाया है वह ऐसा लगता है जैसे विशेष रूप से उसी के लिखा गया है वह गैंग्स ऑफ वासेपुर में एक जानलेवा कसाई की भूमिका हो या नील बट्टा सन्नाटा में पहले स्कूल के प्रिंसिपल का या न्यूटन के सीआरपीएफ कमांडेंट आत्मा सिंह का पंकज त्रिपाठी ने उन्हें विश्वास दिलाया है कि वह चरित्र के मालिक है बिहार के गोपालगंज जिले में किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले पंकज त्रिपाठी का बॉलीवुड तक का सफर बेहद मुश्किल रहा तो आइए जानते हैं इनके संघर्ष में सपा को विस्तार से ई और पंकज त्रिपाठी का जन्म 5 सितंबर 1976
को बिहार के गोपालगंज जिले के बेलसंड गांव में एक किसान परिवार में हुआ वह दो भाई और दो बहनें हैं घर में किसी का भी कला के क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है अंकित त्रिपाठी कहते हैं कि शुरुआती मेरी पढ़ाई ऐसे प्राकृतिक वातावरण में हुई है जहां कोई प्रदूषण नहीं था पांचवीं कक्षा तक हम लोग पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ते थे विभाग कोई स्कूल नहीं था यहां तक कि मेरे गांव में बिजली भी अभी कुछ साल पहले पहुंची है पंकज के पिता जी बचपन में उन्हें पढ़ा लिखाकर डॉक्टर बनाना चाहते थे उनकी ख्वाहिश थी कि उनका बेटा पटना जैसे बड़े शहर में काम करें और परिवार का नाम रोशन करें इसलिए उनकी मानव आपने पढ़ाई करने के लिए पटना भेज दिया उन्होंने वालों इसे इंटर किया है और कुछ सालों तक डौ कोचिंग भी की दो दबा इंतजार में दिया लेकिन डौ के लिए कितने नंबर चाहिए होते थे उतने नहीं आ पाए पढ़ने में वह बुरे नहीं हैं पर उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था पटना आकर पंकज एक छात्र संगठन से जुड़ गए एक आंदोलन के दौरान सात दिन की छोटी सी यात्रा हुई इस दौरान उसकी दोस्ती बांध के सदस्यों से हो कि जेल से निकलने के बाद उनके दोस्तों ने कालिदास रंगालय में नाटक देखने करने को कहा पंकज नाटक देखने चली गई फिर लगातार एक साल तक नाटक देखते-देखते उस बैग गंभीर दर्शक बन गए फिर धीरे-धीरे उनका रुझान बढ़ने लगा और फिर रंगमंच के ही होकर रह गए पंकज कहते हैं कि मैं राजनीति में था राजनीति में आपकी बातें प्रूफ यानि सच्ची हो ना हो ब्यूटीफुल होनी चाहिए
पंकज त्रिपाठी
पंकज त्रिपाठी
जिससे लोग प्रभाव में आ जाए कला के क्षेत्र में ब्यूटी उन्होने हो लेकिन टोटकों होना जरूरी है मुझे लगा कि जोड़ का काम तो दोनों में है और जो यह काम रंगमंच पर ज्यादा सच्चाई से किया जाता है तो धीरे-धीरे में नाटक करने लगा और मुझे छोटे-मोटे रोल मिलने लगे उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने लक्ष्मण नारायण राय का नाटक अंधायुग देखा उसमें पढ़ लेता जायसवाल की अदाकारी देखकर रो पड़े अब उनको नाटक के महत्व का पता चला फिर उन्होंने दो साल के लिए बिहार आर्ट थियेटर को जॉइंट कर लिया अंक आगे बताते हैं कि इस बीच उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने उन्हें अभिनय के अलावा किसी और क्षेत्र में भी करियर बनाने की सलाह दी जिसके बाद पंकज ने पटना में वोट थे इंस्टीट्यूट में एक होटल प्रबंधन का पाठ्यक्रम किया बाद में उन्होंने मौर्य होटल पटना में नाइट चैंपियनशिप पर्यवेक्षक के रूप में काम किया फिर पंकज को दिल्ली में ड्रामा स्कूल के बारे में पता चला जाए
पढ़ने के लिए ज्यादा पैसे नहीं लगते हैं पंकज को दो बार नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में रिजेक्ट कर दिया गया लेकिन अपने तीसरे प्रयास में 2001 में उन्होंने इस प्रस्ताव में प्रवेश ले लिया जब उन्हें चुना गया तब वे लगभग 35 नाटकों में अभिनय कर चुके थे इंडस्ट्री में अपने चैनल को याद करती है और पंकज कहते हैं कि मुझे एक जुलाई को दो पैर कि इन की छत पर गिरने वाली बारिश याद है जब मैं अपने कमरे में बैठा था खुद किडनी के बाद मैंने देखा कि बारिश में दावा किया रैन कोट में पहुंचा वह एनर्जी का लोगो लगा हुआ एक सफेद नेपाल लेकर मेरे पास आया अब मुझे एहसास हुआ कि मेरा चैनल जिम हो गया है और मैं रोने लगा यह मेरी यह बहुत ही बड़ी बात कि यह पूरे देश के उन भी शास्त्रों में नेताजी ने चुना गया था उन्होंने अपनी होटल की नाइट शिफ्ट की नौकरी छोड़ दी उन्होंने अपने माता-पिता को आश्वस्त किया कि एनर्जी से डिग्री हासिल करने के बाद यहां पर एक ड्रामा प्रोफेसर किया शिक्षक बन जाएंगे उनके पिता थोड़ा
पंकज त्रिपाठी
पंकज त्रिपाठी
सूरत लोगों को नौकरी मिल जाएगी 2001 2004 तक उन्होंने वहां ट्रेनिंग की एनर्जी के बाद पंकज पटना लौट आए और इसे भी उनकी शादी हो गई तार महीने तक पटना में रंगमंच किया तो पंकज को महसूस हुआ कि हिंदी रंगमंच में गुजारा करना मुश्किल है इसे अभी भी सोच या लोग चलाते हैं या फिर यह सरकारी अनुदान से चलता है अंक कहते हैं कि सरकारी अनुदान के लिए आपको बहुत सारे लोगों के सामने अपनी रीड चुकानी होती है और मेरी यह तनी हुई है मैं झुक नहीं सकता हमें विनम्र और यह गुरु की बात नहीं है लेकिन मुझे चमचे पसंद नहीं पंकज ने बताया मेरे सामने एक ही विकल्प बचा था खीर में मुंबई जाऊं तो लाइक व 2004 को मैं अपनी पत्नी की सब मुंबई पहुंच गया उसमें परसों क्रोध तनातनी हुआ करती थी बेचारी इंतजार पर लेकर मुंबई आए थे जो कि 3 महीने के अंदर ही खत्म हो गए उनके पति ने बीएड किया था इसलिए उन्होंने एक स्कूल में नौकरी कर ली उनके खर्चे बहुत कम थे तो किसी भी तरह परिवार चल जाता था पंकज कहते हैं कि मैं मुंबई सिर्फ गुजारा करने आया था स्टार बनने नहीं मुझे भूख नहीं थी कौन मुझे बतौर हीरो या विलेन लॉन्च तेरा जैसा कुदरा किसान होता है जिसके खेत में दो किलो भिंडी होती है तो वह खुद बाजार में बेचकर चला जाता है वैसे ही में एक एक्टर जो एक किलो भिंडी लेकर मुंबई आया था 10 से12 साल के संघर्ष केदौरान बहुत से छोटे-मोटे रोल किए फिर मुंबई में छोटी-छोटी एक-एक चीज का दौर चालू हुआ 10 से 12 साल के संघर्ष के दौरान
पंकज त्रिपाठी
पंकज त्रिपाठी
पंकज सब कुछ कर लेते थे टीवी शो कॉरपोरट फिल्में या ऐड मिल गया तो वह भी कर लिया बस यही कहा था कि मुंबई में किसी तरह टिक जाना है लेकिन इस दौरान भी हम इसे एक सिंह के बारे में सोचते थे कि जैसे दूसरे से अलग करना है ताकि लोग उन पर ध्यान दें कि यह कौन है और ऑयल को ईमानदारी के साथ करना चाहते थे वह यह भी कहते हैं कि बिहारियों ने संगत की क्षमता होती है हमारे तक का जीवन तो अंधेरे में उतरा है बल्ब और ट्यूबलाइट की जरूरत नहीं थी हमें फ्री का खाना आज भी पसंद नहीं है कहा कि क्रश और निर्माताओं के ऑफिस के बाहर लंबी लाइन के बीच एक आम सी कद काठी और सामान्य से चेहरे वाली पंकज दो काफी असहज महसूस करते थे इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लगभग डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स से लेकर विज्ञापन फिल्मों के ऑडिशन में दिए इस दौरान पंकज है कई छोटी बड़ी फिल्मों में के ऐसे किरदार ज्योति किसी की नजर में तो नहीं पड़े पर उन्होंने बॉलीवुड की बेगानी इंडस्ट्री में कुछ दोस्त बना दिये इससे भी उन्हें पता लगा कि अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के लिए एक्ट्रेस की तलाश कर रहे थे यह खबर सुनते पंकज का पर ऑडिशन देने पहुंच गए जहां कास्टिंग डायरेक्टर मनीष चावला की नजर उन पर पड़ी मनीष ने फिल्म सुल्तान मिर्जा का किरदार सौंपना जिस पर पंकज खरे उतरे गैंग्स ऑफ वासेपुर के इस किरदार ने बॉलीवुड में पंकज के लिए अपने दरवाजे खोल दिए जिसके बाद उन करने उतरे नील बट्टा सन्नाटा बरेली की बर्फी स्त्री सुपर-30 और गुंजन सक्सेना सरकार गिरने जैसी बॉलीवुड फिल्मों में काम किया और इसके साथ ही मशीन और मां जैसी हिट फिल्मों में भी काम किया इन पंकज ने व्यक्ति इसमें जो अपनी दमदार एक्टिंग का नमूना पेश किया जिसमें मिर्जापुर जैसी व्यक्ति शामिल है पंकज ने बताया कि हमें अरे किसी ने नहीं दिया है हर किसी ने ब्रेक की दिया है यह देखते जाओ तुम कहां जा रहे हो रुको हमारा बैक वैसा ही वाला था जिसे नडेला हो तो एक बूंद पानी तक उनका रहता है वैसे हम एक सेंटर पर टपकते इकट्ठा हो गए हट के अधिनियमों के गांव में नाटक की परंपरा थी उस समय उन्होंने दो-तीन साल गांव में काम किया
लड़की बनते थे क्योंकि लड़की बनने के लिए कोई तैयार नहीं होता था तो लड़की का रोल करता था लोग उसे चिढ़ाते थे नाटकों में जो लड़की बनते हैं ब्राह्मण नहीं होते थे वे या तो ओबीसी वाले होते हैं दलित परिवार से आते थे वे शायद अपने गांव के पहले ब्राह्मण थे जिन्होंने लड़की का किरदार निभाया था उनके निभाए लड़की का किरदार लोगों को बहुत पसंद आया लोगों ने चढ़ाए लेकर मिर्ची लिए नहीं और लोग एक-दो दिन में आ गए पंकज कहते हैं कि एक पड़ाव था
लेकिन एक बहुत ही सोचते स्तर पर था हां इसे बीजारोपण जरूर कह सकते हैं यह वैसा बीजारोपण ताकि आप एक बीच किसी बंजर ज़मीन पर फेंक दें इसके जमने की उम्मीद न के बराबर होती है हमारे यहां का जो थिएटर तब एक बंजर जमीन नहीं था उन्होंने रन से पहले कोई फिल्म नहीं की थी उसमें उनका बहुत छोटा होता जिसे भी अकाउंट नहीं करते हैं और उन्हें बचाने की मिल गया इस रोल के लिए उन्हें कोई प्रयास नहीं किया था यह दो-तीन था पता चला कि परदेसी इंचार्ज और पर मिलेंगे तो उन्होंने कर लिया उसमें उनकी आवाज में नहीं थे दबंग कीजिए और ने की थी उस समय दिल्ली में रहते थे जब rs.8000 का
पंकज त्रिपाठी
पंकज त्रिपाठी
चेक आया तो उस पर श्रीदेवी का हस्ताक्षर था पता चला कि फिल्म के प्रोड्यूसर तो वह बहुत ही कुछ व्यक्तियों की वृद्धि के दीवाने थे और उन्होंने चेक भेजा था एक बार मनोज वाजपेई जी मौर्या होटल में ठहरने आए थे उस समय पंकज हां काम करते थे जब वे होटल छोड़ कर जा रहे थे तो गलती से उनकी चप्पल बाद फूट गई हाउस कीपिंग एक लड़का था उसने फोन करके पंकज को बताया कि मनोज वाजपेई जी आए थे उनके चप्पल यहां छोड़ गई है अब पंकज ने कहा कि मुझे दे दो पहले जैसे गुरुओं का पड़ाव चले रखे थे वैसे मैंने उसे रख लिया उस समय मनोज बाजपेई की फिल्म सत्या ही जो पंकज को बहुत पसंद थी तो मैंने कहा कि आप मुझे दे दो मैं कम से कम उसे इन्हें तो डालते दूंगा हम सब बातें और मैं उनसे मिला तो मैंने उनसे यह बात बताई थी बॉलीवुड अभिनेत्री लूसी ने 20 मिनट एक फिल्म बना रही थी उसमें छोटी बच्चियों के साथ रेप केस इन थे दूर से भारत आई तो और पंकज से मिली और वहीं करने के लिए बोला लेकिन पंकज ने मना कर दिया उन्होंने बोला कि मेरी कुछ सीमाएं हैं मैं कला के नाम पर कुछ भी नहीं कर सकता वहीं प्रोफेशनल कलाकारों के साथ ही बच्चों के साथ करना था उन पर क्या असर होता है उसने मुझे समझाया लेकिन मुझे कुड़ता पसंद नहीं है अंक हैं अपने हर नकारात्मक किरदार में सकारात्मकता लाना चाहता हूं इसी प्रकार की एक्टिंग और उसमें रस बना रहना चाहिए इधर से कूची कूची मुझे देखेंगे ने रह जाऊंगा तो लोग सिनेमा हॉल में ₹10 का टिकट लेकर मेरा प्रवचन सुनने नहीं आएंगे बेहतरीन एक्टर की जानकारी आपको पसंद आई होगी अगर पसंद आए तो इस लाइक करें और अपने दोस्तों को शेयर करें

India Vlog
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